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कभी कमरे में ही चलना हुआ था मुश्किल, घुटना प्रत्यारोपण के बाद न केवल पोते-पोतियों के साथ खेल रही हैं, बल्कि कर रही हैं मॉर्निंग वॉक भी

- घुटनों का दर्द चलने नहीं देता और कम चलने से बढ़ता वजन बन जाता है कई बीमारियों का कारण 

 

● फोर्टिस हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा में 112 किलोग्राम वजन के बावजूद 63 वर्षीया महिला का हुआ सफल घुटना प्रत्यारोपण

मृत्युंजय प्रताप सिंह पत्रकार

ग्रेटर नोएडा, 24 फरवरी, 2025:  “पहले मैं कुछ कदम भी नहीं चल पाती थी, अब बिना दर्द 2 किलोमीटर आराम से चल सकती हूँ।” यह कहना है 63 वर्षीय साक्षी देवी का, जिनका घुटना प्रत्यारोपण (Knee Replacement) हाल ही में फोर्टिस हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा में हुआ। गठिया और बढ़ते वजन के कारण वे अपने ही घर में चलने-फिरने तक में असमर्थ हो गई थीं। हर कदम दर्द से भरा होता था, और उनके लिए सामान्य दिनचर्या भी चुनौती बन गई थी। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं – वे न सिर्फ अपने पोते-पोतियों के साथ खेल रही हैं, बल्कि रोज़ मॉर्निंग वॉक भी कर रही हैं।

 

साक्षी देवी पिछले सात वर्षों से गठिया (Arthritis) के गंभीर दर्द से जूझ रही थीं। 112 किलो वजन के कारण उनके घुटनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता था, जिससे उनका चलना-फिरना बेहद सीमित हो गया था। शुरुआत में उन्होंने दवाइयों और घरेलू उपचारों का सहारा लिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास भी कम होने लगा, क्योंकि वे बिना सहारे कुछ कदम भी नहीं चल सकती थीं। डॉक्टरों ने बताया कि गठिया ने उनके जोड़ों को इतना नुकसान पहुँचा दिया है कि सर्जरी ही एकमात्र समाधान है। हालांकि, साक्षी देवी को डर था कि उनके अधिक वजन के कारण सर्जरी सफल नहीं हो पाएगी।

 

जब उन्होंने डॉ. हिमांशु त्यागी (अतिरिक्त निदेशक, ऑर्थोपेडिक्स, फोर्टिस ग्रेटर नोएडा) से परामर्श किया, तो उन्होंने उनकी आशंकाओं को दूर किया। डॉ. त्यागी ने कहा, “यह आम गलतफहमी है कि अधिक वजन वाले लोगों के लिए घुटना प्रत्यारोपण सुरक्षित नहीं है। बल्कि, यह उनके लिए ज़रूरी होता है ताकि वे फिर से सक्रिय जीवन जी सकें।”

 

उन्होंने बताया, “खराब हुए घुटनों के कारण चलने फिरने में असमर्थता न केवल वजन बढ़ाती है बल्कि कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। मोटापा इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ाकर टाइप-2 डायबिटीज का कारण बन सकता है, वहीं बढ़ता वजन ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल बढ़ाकर हृदय रोग की आशंका बढ़ा देता है। अधिक वजन से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे घुटनों की हड्डियाँ तेजी से घिसती हैं और ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, लगातार दर्द और चलने-फिरने की असमर्थता से मानसिक तनाव और डिप्रेशन भी बढ़ सकता है।”

 

डॉ. हिमांशु त्यागी और उनकी टीम के सदस्यों डॉ. मोहित शर्मा और डॉ. राजेश मिश्रा की देखरेख में साक्षी देवी के दोनों घुटनों का प्रत्यारोपण किया गया। इस दौरान उनके घुटनों को हटाकर विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए कृत्रिम जोड़ (implants) लगाए गए। सर्जरी के बाद फोर्टिस हॉस्पिटल में पुनर्वास (rehabilitation) प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें फिजियोथेरेपी और धीरे-धीरे चलने की ट्रेनिंग शामिल थी।

 

सर्जरी के कुछ ही हफ्तों में साक्षी देवी बिना सहारे चलने लगीं। अब वे रोज़ 1.5 से 2 किलोमीटर तक पैदल चल सकती हैं और घर के रोजमर्रा के कामों में भी सक्रिय हो गई हैं।

 

साक्षी देवी अपनी बदली हुई ज़िंदगी को लेकर बेहद खुश हैं। वे कहती हैं, “पहले मुझे घर के अंदर भी चलने में दिक्कत होती थी, लेकिन अब मैं पोते-पोतियों के साथ खेल सकती हूँ। सुबह की सैर करना वापस मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है। फोर्टिस हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा के डॉक्टरों ने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं हमेशा उनकी आभारी रहूँगी।””

Dainik Aaj

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