गीता प्रवचन का निरंतर पारायण जीवन परिवर्तन का साधन है:ऊषा दीदी

लखनऊ। विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार रमेश भईया ने बताया कि दुनिया को आश्चर्यचकित करने वाला भूदान आंदोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे की बहनों के लिए की गई अभिनव रचना ब्रह्मविद्या मंदिर पवनार (वर्धा ), महाराष्ट्र, में दिनांक 27 से 31 जुलाई 2024 तक गीता-प्रवचन स्वाध्याय शिविर आयोजित किया गया। इस शिविर में उत्तर प्रदेश, गुजरात, असम, दिल्ली, मध्यप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र विदर्भ के 44 शिविरार्थियों ने भाग लिया। भगवद्गीता ग्रंथ पर बाबा विनोबा ने सन 1932 में धूलिया जेल में बंद कैदियों के बीच हर रविवार को दिए गए प्रवचन गीता प्रवचन कहलाए। जो अभी 26 भाषाओं में प्रकाशित हैं।
विनोबा विचार की अध्येता सुश्री ऊषा बहन ने शिविर का शुभारभ करते हुए कहा कि जीवन में स्वाध्याय की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए योगसूत्र पर अपनी बात रखी।उन्होंने कहा कि बाबा कहते थे एग्रीकल्चर इज दी बेस्ट कल्चर ।अपना गुण दर्शन करना और पराए भी।गुण दर्शन ही करो । दीदी ने अपरिग्रह के बारे में कहा कि ज्यादा चीजें बोझ बन जाती हैं। जो चीज जरूरत नहीं उसको रखने की क्या जरूरत है। समाज से जितना लेना उससे कम वापस देना या काम करना एक प्रकार की चोरी ही है।
विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार श्री रमेश भैया ने गीता-प्रवचन स्वाध्याय शिविर की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने नंदिनी शिविर से प्राप्त प्रतिफल की भी चर्चा की। समाज में सद्भावना भरी पड़ी है।उसे खोजने की जरूरत है। 15 नंदिनी।शिविर का आयोजन होना इसका प्रमाण है।
वरिष्ठ सर्वोदय सेविका नासिक की सुश्री नलिनी नावरेकर बहन ने गीता प्रवचन के एक से लेकर अठारह अध्याय तक जीवनोपयोगी मौक्तिक चुनकर संक्षेप में व्यक्त किये।
सर्वोदय आश्रम, हरदोई की सुश्री कुसुम बहन ने अपने काम के साथ गीता प्रवचन को पढ़कर बाबा विनोबा के विचारों को आत्मसात किया।
चंपारण बिहार के श्री शत्रुघ्न झा ने विगत बीस वर्षों के सेवा कार्य और गीता प्रवचन से तालमेल की जानकारी दी। बाबा विनोबा के विचार उन्हें काम करने की प्रेरणा देते हैं।
कर्जत (महाराष्ट्र) की विमल पाटिल बहन ने स्वयं के जीवन में गीता प्रवचन के महत्व को निरूपित किया।
आसाम के बदन भाई देव ने शंकरदेव-माधव देव के संदर्भ के साथ स्वाध्याय के महत्व को बताया।
28 जुलाई को प्रात: प्रार्थना के बाद श्री गौतम भाई ने गीता प्रवचन में वर्णित विभूति चिंतन पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बाबा विनोबा ने विभूति चिंतन को नवीन दृष्टि प्रदान की है। गीता प्रवचन क्रांति ग्रन्थ है। उन्होंने कहा कि जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मज्ञान प्राप्ति है। आत्मा वा अरे! दृष्टव्यो, श्रोतव्यो, मंतव्यो, निदिध्यास के साथ शंकराचार्य के सूत्र तत: किम् सूत्र की व्याख्या की। विनोबा जी ने ब्रह्मचर्य की साधना के लिए खेती को सर्वोत्तम साधन बताया है। ऋषि शब्द कृषि से ही निकला है। पश्चिमी देश भोग परायण है, जबकि भारत मोक्ष परायण देश है। गीता प्रवचन सफाई ग्रंथ, चित्त शुध्दि का ग्रंथ है। सुश्री रेखा बहन के हरि तुम बहुत अनुग्रह कीन्हो’ भजन से सत्र का प्रारंभ हुआ।
बापू और बाबा दोनों वैज्ञानिक
सुश्री ऊषा बहन ने अपने प्रवचन में कहा कि मनुष्यत्वं, मुमुक्षत्वं और महापुरुष संश्रय: भाग्य की बात है। यह देवों को भी दुर्लभ है। स्वाध्याय में अपने भीतर साईं को ढूंढना है। आत्मा देह के पर्दे से ढंका हुआ है। हमें स्वयं को आत्मज्ञान की और मोडना है। हमारी देह उस नित्य को प्राप्त करने का साधन है। उन्होंने कहा कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह सभी धर्मों में है। गांधीजी ने इन्हें सामाजिक बनाया। बापू ने इन पर जोर दिया। जब विनोबा जी ने बनारस में गांधीजी का व्याख्यान पढा तो गांधीजी के साथ पत्र व्यवहार किया। गांधीजी ने आश्रम की नियमावली में शामिल एकादश व्रत भेज दिए। विनोबा जी सीधे गांधीजी के पास कोचरब आश्रम पहुंच गये। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग कहा और विनोबा जी ने जीवनम् सत्य शोधनम् कहा। दोनों ही शब्द वैज्ञानिक हैं। ऊषा बहन ने ज्ञानेश्वरी के आधार से ज्ञानी पुरूष के 18 लक्षणों का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा अहिंसा याने प्रेम+करुणा। विनोबा जी ने झाडू, चरखा और कुदाल को अहिंसा का औजार बताया है। बापू ने चरखे से स्वराज्य लाकर दिखाया। अस्तेय व्रत की व्याख्या करते हुए ऊषा बहन ने कहा कि बिना श्रम के भोजन करना चोरी है। समाज से कम से कम लेकर अधिक से अधिक देना अस्तेय पालन का तरीका है। ब्रह्मचर्य व्रत के बारे में मोरारी बापू जी ने सेवाग्राम की मानसमुनि कथा में कहा था कि विनोबा जी कलियुग के श्रेष्ठ ब्रह्मचारी हैं। ब्रह्मचर्य सिर्फ ईश्वर प्राप्ति के लिए हो सकता है। भीष्म का ब्रह्मचर्य अपने पिता के लिए था। ब्रह्मचर्य का मिशन सिर्फ आध्यात्मिक हो सकता है। ऊषा बहन ने स्वदेशी, सर्वधर्म समभाव और स्पर्श भावना का सामाजिक महत्व बताया। इन्वायरनमेंटल सेनिटेशन इंस्टीट्यूट सुघढ एवं साबरमती के गांधी आश्रम ट्रस्ट अहमदाबाद के श्री जयेश भाई ने बताया कि युवावस्था में वे इंग्लैंड चले गये थे। वहां पर कम्फर्ट तो था, लेकिन सैटिसफेक्शन नहीं था। इंग्लैंड से भारत वापस आये और पिता पद्मश्री ईश्वर भाई पटेल के साथ सफाई कार्य का संकल्प लिया। शुरू में 125 टाॅयलेट साफ करने का लक्ष्य रखा। वह उनके लिए प्रोजेक्ट नहीं बल्कि खुद को बदलने की एक प्रोसेस थी। बाहर की गंदगी को सहन नहीं करने वाला भीतर की गंदगी को कैसे सहन कर सकता है। इसमें गीता प्रवचन सहायता कर रही है। सुश्री अनार बेन ने 25000 महिलाओं को स्वावलंबी बनाकर उद्यमशील बनाया है। उनके बनाये उत्पादों की प्रदर्शनी क्राफ्ट बाजार के नाम से देश और विदेश में लोकप्रिय है। जयेश भाई ने सेवा कैफे, सेवा सवारी जहां बिल नहीं दिल की परंपरा है।
बिहार की सर्वोदय सेवक गांधी विचारक डाॅ सुजाता चौधरी ने गीता प्रवचन के आधार पर ज्ञान, कर्म और भक्ति को व्याख्यायित किया। यदि हमारा कर्म सेवामय, प्रेममय और भक्तिमय होगा तो वह पुरुषोत्तम योग होता है। हमारे मन का विकार ही शत्रु के रूप में बाहर खडा है। इसे समझ लेंगे तो चित्त शुध्दि में सहायता मिलेगी। महात्मा गांधी ने जीवनभर अजपा जाप किया। आंतरिक विकास में नाम स्मरण मुख्य है।
ब्रह्म विद्या मंदिर की अंतेवासी सुश्री 93 वर्षीय कालिंदी ताई ने स्वाध्याय के संबंध में अपने बचपन का अनुभव सुनाते हुए कहा कि उन्हें प्रात:काल उठा दिया जाता था। लेकिन वह रुचता नहीं था। जब उन्हें मनाचें श्लोक मिले, तब रुचि आने लगी। इसलिए स्वाध्याय रुचिकर होना चाहिए। स्वाध्याय के अनुकूल वृत्ति होना चाहिए। ज्ञानेश्वरी में कहा है अंतरतम में जो ज्ञान है, वह योग्य व्यक्ति को कहो। सुनने वाला एकनिष्ठ हो। सु-मन हो याने अच्छा मन हो। अच्छे भाव हों। तिकडम न हो, नम्रता हो, अहंकाररहित हो। स्वाध्याय में अनिंदा हो। दोष दर्शन न करें। वाणी भी शुध्द हो। विनोबा जी को यह बात मंजूर नहीं थी कि उनके विचार को कोई बिना सोचे समझे मान ले। स्वाध्याय सामूहिक होना चाहिए। स्वाध्याय के लिये मातृभाषा पर्याप्त नहीं है। हिंदी भाषा आना चाहिए। ज्ञान ग्रहण के लिये हिंदी सीखना होगी। कालिंदी ताई ने महत्व की बात जोडते हुए कहा कि जिस स्वाध्याय में निष्काम सामाजिक सेवा की प्रेरणा नहीं है, वह स्वाध्याय अधूरा है। इसलिये स्वाध्याय समाजाभिमुख होना चाहिए।
बैंगलोर की प्रोफेसर आबिदा बेगम ने अपनी बात को इस्लाम के आधार से स्पष्ट किया। जब व्यक्ति सलाम वालेकुम कहता है तब जवाब आता है वालेकुम अस्सलाम। दोनों एक-दूसरे की शरण में हैं। बाबा ने हरेक धर्म ग्रंथ का सार निकाला है। दुनिया के सभी धर्म ग्रंथों में शांति और करुणा का संदेश है। ईश्वर पर ईमान रखने वाला मुसलमान होता है।
अरविंदो काॅलेज नई दिल्ली के प्रोफेसर दिनेश भाई ने कहा कि नैतिक मूल्यों के लिए धर्म ग्रंथों का सार ग्रहण करना जरूरी है। बिहार सीतामढ़ी की शिक्षिका ऊषा शर्मा ने बताया कि नाम स्मरण निरंतर होता रहता है। स्वाध्याय को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना जरूरी है। जमनालाल बजाज पुरुस्कार से सम्मानित विमला बहन ने कहा कि हमें अपने स्वधर्म का भान। हर समय रखना चाहिए। मछली का उदाहरण हमारे सामने है कितना भी उसे कहो या आकर्षण दो कि पानी।से।दूध अच्छा है।तुम उसमें रहो तो कदापि नहीं जाएगी।क्योंकि वहां उसका जीवन नहीं है।
सुश्री शीला बहन ने अपरिग्रह को परिभाषित किया। अपरिग्रह से समाज में स्वस्थ वृत्ति का निर्माण होता है। वस्तु के साथ विचारों का संग्रह भी नहीं होना चाहिए। आगे ज्योत्सना ताई ने कहा कि हम अपने श्रम का हिसाब लिखकर रखते हैं, लेकिन समाज के लिए कौन सा समय दिया, यह नहीं बताते। लोक संपर्क का काम अहिंसक, अराजनीतिक और असांप्रदायिक आधार पर होगा। हमें गीता प्रवचन को रोम रोम में बैठा लेना चाहिए। गीता प्रवचन ह्रदय में होगा तो आत्मज्ञान पैठ जाएगा। बाबा ने इसे नित्य पठनीय कहा है। हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय सचिव श्री संजय राय ने देश भर में स्वाध्याय शिविर करने की योजना प्रस्तुत की जिससे गीता के प्रति एक भाव बढ़े।क्योंकि गीता जीवन ग्रंथ है। पवनार आश्रम की कंचन दीदी ने स्वाध्याय को और ज्यादा परिभाषित किया।गंगा दीदी ने नवें अध्याय में नाम स्मरण के।अनेक संस्मरण सुनाए। ज्योति दीदी ने नंदिनी शिविर का जिक्र करते हुए स्वाध्याय शिविर में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात की।
चर्चा में सुलभा बहन, नाथू भाई, टीपू भाई,मीनाक्षी बहन सीमा बहन गुजरात की स्वरा बहन, प्राची नरेंद्र, असम की अंजली बहन चतुरा बहन, जौनपुर के अमित परमार आश्रम की मीनू बहन , हेमा शाह बहन उड़ीसा की नलिनी बहन गुजरात की जम्मू बहन,मालती बहन ने विचार व्यक्त किये।