फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम में फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में नाईट ब्लड सर्वे द्वारा इस रोग की पहचान और प्रसार दर को पता किया जाता है
नाईट ब्लड सर्वे में 20 वर्ष एवं इसके ऊपर की आयु के व्यक्तियों के रक्त का नमूना रात्रि 10 बजे से पहले नहीं लिया जायेगा
• माइक्रोफाइलेरिया की पहचान और उसके प्रसार दर को भलीभांति जानने के लिए नाईट ब्लड सर्वे की गुणवत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण
• आगामी अगस्त माह में प्रदेश के 27 जनपदों में एम.डी.ए. कार्यक्रम से पहले नाईट ब्लड सर्वे संचालित किया जायेगा
7 मई, 2025, लखनऊ : फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम में नाइट ब्लड सर्वे का महत्व फाइलेरिया के परजीवी (माइक्रोफाइलेरिया) की प्रसार दर जानने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसके महत्व को देखते हुए, आज चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा वर्चुअल रूप से 27 जनपदों के अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी वेक्टर बोर्न डिजीज, जिला मलेरिया एवं सम्बंधित अधिकारियों के साथ एम.डी.ए. कार्यक्रम के पहले संचालित किये जाने वाले नाईट ब्लड सर्वे की तैयारी हेतु समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया ।
इस अवसर पर अपर निदेशक मलेरिया एवं वी.बी.डी., उत्तर प्रदेश डॉ. ए. क. चौधरी ने बताया कि यह सर्वे रात ही में किया जाता है, क्योंकि रात में फाइलेरिया के परजीवी रक्त में अधिक संख्या में होते हैं, इसलिए इस समय रक्त के नमूने लेकर उनकी पहचान करना आसान हो जाता है । उन्होंने यह भी बताया कि राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत आगामी अगस्त माह में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा फाइलेरिया रोग से प्रभावित 27 जनपदों (औरैया, बहराइच, बलरामपुर, बस्ती, चंदौली, देवरिया, इटावा, फरुखाबाद, फतेहपुर, गाजीपुर, गोंडा, गोरखपुर, हरदोई, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर, कौशाम्बी, खीरी, कुशीनगर, महाराजगंज, मिर्ज़ापुर, रायबरेली, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, सीतापुर, श्रावस्ती एवं सुल्तानपुर) में एम.डी.ए. कार्यक्रम संचालित किया जाना निर्धारित है । उपरोक्त जनपदों में एम.डी.ए. कार्यक्रम के पहले नाईट ब्लड सर्वे संचालित किया जायेगा ताकि इन क्षेत्रों में फाइलेरिया के परजीवी की प्रसार की दर का पता लगाया जा सके । नाईट ब्लड सर्वे के दौरान 20 वर्ष एवं इसके ऊपर की आयु के लगभग 300 व्यक्तियों के रक्त का नमूना रात्रि 10 बजे के बाद लिया जायेगा । अगर जांच में माइक्रो फाइलेरिया की दर 1 या 1 से अधिक होगी तो उस क्षेत्र में एम.डी.ए. कार्यक्रम चलाया जायेगा और अगर माइक्रो फाइलेरिया की दर 1 से कम होगी तो वहां एम.डी.ए. कार्यक्रम नहीं चलाया जायेगा और उस क्षेत्र में प्री-टास आयोजित किया जायेगा । नाईट ब्लड सर्वे एम.डी.ए समाप्त होने के 1 या डेढ़ माह पहले और अभियान समाप्त होने के 6 महीने बाद किया जाता है । 1 या डेढ़ माह पहले इसलिए किया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि उस क्षेत्र में माइक्रो फाइलेरिया है कि नहीं और 6 महीने बाद इसलिए किया जाता है कि एम.डी.ए कार्यक्रम में फाइलेरिया रोधी दवाएं खाने के बाद, उन क्षेत्रों में माइक्रो फाइलेरिया की क्या स्थिति है । उन्होंने उपस्थित प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि नाईट ब्लड सर्वे में लिए जाने वाले रक्त के नमूने की गुणवत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि, इससे ही माइक्रोफाइलेरिया की पहचान और उसके प्रसार दर को भलीभांति जाना-पहचाना जा सकता है ।
इस अवसर पर पाथ संस्था के डॉ. शोएब अनवर और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. तनुज शर्मा ने प्रतिभागियों को नाईट ब्लड सर्वे के दौरान आने वाली चुनौतियों, उनके समाधान एवं एक सफल नाईट ब्लड सर्वे किस प्रकार संचालित किया जाये, इस बारी में महत्वपूर्ण जानकारियां दी । समीक्षा बैठक में जनपद स्तरीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ ही सीफार, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल और ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के प्रतिनिधि भी वर्चुअल रूप में उपस्थित थे ।