बाल क्षय रोग (टीबी) दिशा-निर्देशों पर राज्य स्तरीय ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स (टीओटी) का हुआ आयोजन
प्रथम चरण में प्रदेश के 26 जनपदों के जिला क्षय रोग अधिकारी, जिला चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ और मेडिकल कालेज के बाल रोग विशेषज्ञ को बनाया गया मास्टर ट्रेनर
लखनऊ: राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के अंतर्गत वर्ल्ड हेल्थ पार्टनर्स, साथी संस्था एवं राज्य टीबी प्रकोष्ठ, उत्तर प्रदेश के संयुक्त प्रयास से राज्य स्तरीय ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स (टीओटी) का आयोजन होटल लीनिएज, लखनऊ में किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य बाल क्षय रोग की जाँच और उपचार के लिए प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करना है, ताकि प्रदेश में टीबी उन्मूलन के प्रयासों को गति दी जा सके।
पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण ने इस अवसर पर प्रदेश के टीबी उन्मूलन लक्ष्य की दिशा में सामूहिक प्रयासों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाल क्षय रोग से संबंधित दिशा-निर्देशों पर प्रशिक्षकों को तैयार करना इस कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य है। प्रशिक्षित चिकित्सकों के माध्यम से बाल क्षय रोग की पहचान, समयबद्ध उपचार और रोकथाम को प्रदेश भर में प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा।
प्रमुख सचिव ने यह भी रेखांकित किया कि टीबी की शीघ्र पहचान, उचित प्रबंधन और जागरूकता का प्रसार इस रोग को जड़ से खत्म करने के लिए अत्यावश्यक है। उन्होंने बताया कि बच्चों में टीबी की पहचान अक्सर मुश्किल होती है, क्योंकि इसके लक्षण सामान्य बीमारियों से मेल खाते हैं। इससे न केवल रोग बढ़ता है, बल्कि बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रमुख सचिव ने जानकारी दी कि प्रथम चरण के तहत इस कार्यशाला के माध्यम से प्रदेश के 26 जनपदों के जिला क्षय रोग अधिकारी, जिला चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ और मेडिकल कालेज के बाल रोग विशेषज्ञ को मास्टर ट्रेनर बनाया गया है जो अपने जिलों में जाकर जिला चिकित्सालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सकों को प्रशिक्षित करेंगे।
डॉ. शैलेन्द्र भटनागर, राज्य क्षय रोग अधिकारी, उत्तर प्रदेश ने बताया, भारत में टीबी रोगियों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है, और उत्तर प्रदेश इसमें महत्वपूर्ण योगदान देता है। एनटीईपी के अंतर्गत हम शीघ्र जाँच, मुफ्त उपचार, और समुदाय-स्तर पर जागरूकता फैलाने के लिए प्रयासरत हैं। डॉ. भटनागर ने कहा कि बच्चों में अतिरिक्त-पल्मोनरी टीबी जैसे सीएनएस, लिंफ नोड्स, और एब्डॉमिनल टीबी की जाँच और उपचार जटिल होते हैं, जिनके लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है। उन्होंने दवा-प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी) के बढ़ते मामलों को एक बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि इसके प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित चिकित्सकों की अहम भूमिका है।
कार्यशाला में बाल क्षय रोग की जाँच और उपचार प्रोटोकॉल पर विस्तार से चर्चा की गई और गैस्ट्रिक एस्पिरेट और इंडक्शन स्प्यूटम जैसे जटिल परीक्षणों की उपलब्धता एवं सही प्रयोग पर विशेष जोर दिया गया। कार्यशाला में दवा-प्रतिरोधी टीबी और एचआईवी-टीबी जैसी जटिलताओं के जाँच और प्रबंधन के तरीके समझाए गए और बाल क्षय रोग के मामलों में समुदाय और महिला एवं बाल स्वास्थ्य के महत्व को चर्चा कि गई।
कार्यशाला के अंत में डॉ आर. पी. सुमन निदेशक, राष्ट्रीय कार्यक्रम ने कहा, प्रशिक्षण के बाद प्रशिक्षक अपने जिलों में जाकर चिकित्सकों को प्रशिक्षित करेंगे। इससे जमीनी स्तर पर टीबी के कुशल प्रबंधन और बाल टीबी के मामलों की समय पर पहचान सुनिश्चित की जा सकेगी। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला ने टीबी उन्मूलन के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता और बाल क्षय रोग को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।
इस कार्यक्रम में प्रमुख विशेषज्ञों डॉ. सुशांत माने, एसोसिएट प्रोफेसर, ग्रांट मेडिकल कॉलेज, मुंबई/सदस्य, राष्ट्रीय तकनीकी विशेषज्ञ समूह, एनटीईपी, डॉ. राजेश्वर दयाल, प्रोफेसर, एसएन मेडिकल कॉलेज, आगरा, डॉ. महिमा मित्तल, प्रोफेसर, एम्स, गोरखपुर, डॉ. सारिका गुप्ता, प्रोफेसर, केजीएमयू, लखनऊ, डॉ. रुचिका भटनागर, एसोसिएट प्रोफेसर, जीआईएमएस, ग्रेटर नोएडा और प्रशिक्षकों के साथ-साथ राज्य टीबी प्रकोष्ठ के अधिकारी, वर्ल्ड हेल्थ पार्टनर्स और साथी संस्था के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।